बुधवार, 11 नवंबर 2020

श्री जयनारायण व्यास राजस्थान के ऐसे मुख्यमंत्री जो पद पर रहते हुए दोनों जगह से चुनाव हार गए।


साल 1952. पूरे देश में चुनाव हो चुके थे. लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक हुए. नंबर आया रिजल्ट का. वोटिंग पोस्टल बैलेट पर हुई इसलिए नतीजे आने में कई दिन लग रहे थे. उस टाइम राजस्थान के सीएम थे जयनारायण व्यास. व्यास अपने खास नेता मित्रों माणिक्यलाल वर्मा, मथुरादास माथुर और रामकरण जोशी के साथ बैठकर रिजल्ट्स का हिसाब-किताब ले रहे थे. जयनारायण व्यास सिटिंग सीएम थे और दो जगह से चुनाव लड़ रहे थे. एक सीट थी जालौर-ए और दूसरी जोधपुर शहर-बी. व्यास अपनी जीत को लेकर कॉन्फिडेंट थे. तभी व्यास के सचिव वहां आए और बोले- दो खबर हैं. एक अच्छी एक बुरी. अच्छी ये कि पार्टी 160 में से 82 सीटों पर चुनाव जीत गई है. बुरी खबर ये कि व्यासजी दोनों जगह से चुनाव हार गए हैं. कमरे में सन्नाटा पसर गया. वहां बैठे लोगों के लिए कांग्रेस जीत की खुशी से ज्यादा व्यास की हार का दुख था. क्योंकि सालभर पहले ही इस कैंप ने हीरालाल शास्त्री को हटवाकर जयनारायण व्यास को सीएम बनवाया था. अब व्यास के साथ उनका भी करियर खतरे में आ गया. लेकिन कहानी यहां खत्म नहीं हुई है. चलते हैं शुरुआत पर.

*घटना जिससे जिंदगी बदल गई

30 मार्च, 1919 की शाम. सदर बाजार में कुछ लड़के खाना खा रहे थे. इनमें से एक था जयनारायण. जोधपुर का रहने वाला. पढ़ाई के वास्ते पंजाब यूनिवर्सिटी का दाखिला लिया. तब पीयू का एग्जाम सेंटर दिल्ली में भी हुआ करता था. उसी के वास्ते सब आए आए थे. पहला कौर तोड़ते ही बाजार में शोर मचा. चांदनी चौक में गोली चल गई.

बात सही थी. पुलिस और क्रांतिकारियों के ग्रुप के बीच टकराव हुआ था. कई शहीद हुए थे. व्यास जब मौके पर पहुंचे तो देखा. एक तरफ पुलिस. दूसरी तरफ हजारों की भीड़. जिसके आगे स्वामी श्रद्धानंद और हकीम अजमल खान. पुलिस को ललकारते. पुलिस को अब पीछे हटना पड़ा.

इस नजारे ने व्यास को बदल दिया. अब वो क्रांतिकारियों के साथी थे. और मास्टर जी भी. ये मास्टर क्यों. क्योंकि खर्चा चलाने के लिए वो बच्चों को पढ़ाते थे और फिर दिल्ली में इसी नाम से मशहूर रहे.

*महाराज की नाराजगी 

साल 1921 स्वामी श्रद्धानंद विजय नाम का अखबार निकालते थे. इसके प्रचार प्रसार के लिए जयनारायण ने किताबों और अखबारों की दुकान खोल ली. फिर यहां नौजवानों का मजमा लगने लगा. आजादी पर बात होने लगी.

राजा तक खबर पहुंची. दुकान बंद करवा दी गई. इसके लिए उसने 1909 के अपने ही बनाए कानून का इस्तेमाल किया. क्या कानून. कि राज्य में कोई अखबार नहीं पढ़ सकता मेरे हुकुम के बने. एक और अफलातूनी फरमान था. कोई टाइपराइटर नहीं खरीद सकता, बिना परमिशन के. राजा और व्यास का झंझट यहां खत्म नहीं हुआ. इसे संदर्भ के तौर पर याद रखिएगा।

* दस नंबर रजिस्टर

जोधपुर राज्य में किसानों पर कड़े प्रतिबंध लाद दिए गए. इसके खिलाफ मारवाड़ हितकारिणी सभा ने आंदोलन किया, व्यास इसके महासचिव थे. आंदोलन को कुचलने के लिए राजा आतुर था. उसकी सरकार ने जयनारायण व्यास और कई दूसरे नेताओं को दस नंबरी घोषित कर दिया। दस नंबरी मतलब थानों में एक दस नंबर का रजिस्टर खोला जाता था. इस रजिस्टर में जिनका नाम दर्ज होता उन पर पुलिस नज़र रखती थी. कहीं आने-जाने से पहले इन लोगों को थाने में बताना पड़ता था. तो व्यास थाने में हाजिरी भरते. फिर अपने क्रांति के काम में जुट जाते. कभी लोगों से बातकर तो कभी कविता लिख. 

मतलब. ऐसा राज हो राजा जी. जिसमें गांव गांव में पंच चुने जाएं, जो राजकाल चलाएं. इन्हीं में से मंत्री बने और यही पंच राजा को भी चलाएं।

साल 1927 कांग्रेस का बंबई अधिवेशन हुआ. एक बड़ा फैसला लिया गया. जहां अंग्रेजों का सीधा शासन, वहां तो कांग्रेस है. मगर जहां रियासतें हैं, वहां भी आंदोलन हो. वहां कांग्रेस का नाम प्रजामंडल होगा. राजशाही के समानांतर खड़ी लोकसत्ता. अधिवेशन में ये भी तय हुआ कि रियासतों से आने वाले कांग्रेस सदस्य वापस जाकर प्रजामंडल की गतिविधियां शुरू करें. जाहिर सी बात है कि ये सब राजा को खटका. व्यास को वापस लौटने पर प्रजामंडल की गतिविधियां शुरू होते ही गिरफ्तार कर लिया गया. नागौर के किले में कई लोगों पर राजद्रोह का मुकदमा चलने लगा. बचाव के लिए वकील तक नहीं. व्यास और उनके साथियों को छह साल की सजा हुई. मगर जेल में चार साल ही रहे. गांधी-इरविन समझौते के तहत राजनीतिक कैदी छोड़े गए तो वह भी बाहर आ गए.

अखबार वाले से मुख्यमंत्री तक 

1933 में जेल से रिहा होने के बाद व्यास ने अखिल भारतीय देशी राज्य प्रजा परिषद का गठन किया. नेहरू को इसका अध्यक्ष बनाया गया और जयनारायण ने सचिव का काम संभाला. अब उनकी गतिविधियों का केंद्र जोधपुर की जगह मुंबई हो गया. यहीं पर उन्होंने ‘अखंड भारत’ नाम का अखबार शुरू किया. क्रांति की बात पूरे देश में फैलने लगी, मगर पैसे चुकने लगे.

जीवनीकारों के मुताबिक मुफलिसी का आलम ये था कि दिन में जो अखबार बेचते, रात में उसी के बचे हुए अंक बिछा समंदर किनारे सोते थे व्यास. कई बार पैसे कमाने के लिए फिल्मों में काम करने का ख्याल भी आया.

इन सबमें दो साल बीत गए. अखबार बंद हो गया. जोधपुर लौटने का मन किया. पर एक पेच था. जोधपुर के प्रधानमंत्री डोनाल्ड फील्ड ने उनको राज्यबदर कर रखा था. व्यास फिर भी मुंबई से लौटने लगे. ट्रेन के जरिए। मगर पुलिस ने उन्हें उतरने नहीं दिया. अजमेर के ब्यावर इलाके को रवाना कर दिया. दो साल यहीं बीते. फिर बाप की तबीयत बहुत बिगड़ी तो राजशाही कुछ पिघली.

जयनारायण को मानवीय आधार पर जोधपुर वापसी की इजाजत दे दी गई. वापसी के कुछ हफ्तों बाद पिता गुजर गए. मगर जयनारायण वापस नहीं गए. मारवाड़ लोकपरिषद के काम में लग गए. अंग्रेज सरकार ने स्थानीय निकाय चुनाव करवाए तो व्यास नगरपालिका अध्यक्ष बन गए. फिर आया भारत छोड़ो आंदोलन. सब पद बेकार. जेल यात्रा फिर चालू. और प्रधानमंत्री डोनाल्ड से टसल भी. 1945 में सब राजनीतिक कैदी छूटे. देश की आजादी की बात चलने लगी. तभी व्यास ने डोनाल्ड की शिकायत करते हुए नेहरू को खत लिखा. इन सबके बारे में हमने आपको वेंकटाचारी वाले किस्से में बताया है.

अभी बस इतना रिकैप कर लें कि डोनाल्ड गए. फिर दो साल बाद 1947 में राजा उम्मेद भी गुजर गए. उनके बेटे हणूत सिंह राजा बने. शुरू के कुछ महीने नेहरू-पटेल के प्रति वो अक्खड़ रहे. और जाहिर है कि जोधपुर में उनके प्रतिनिधि जयनारायण के लिए भी. मगर देश अब आजाद था. लोकप्रिय सरकार का समय था. राजा ज्यादा कुछ कर नहीं पाए. जयनारायण व्यास 1948 में जोधपुर राज्य की लोकप्रिय सरकार के मुख्यमंत्री बन गए. पर ये सब एक बरस ही चला. क्योंकि 30 मार्च 1949 को सब रियासतों को मिलाकर राजस्थान राज्य बना दिया गया.

व्यास को लगा कि नेहरू का आशीर्वाद उनके साथ है. इस बड़े राज्य के मुखिया भी वही बनेंगे. मगर नेहरू नेशनल अफेयर्स में बिजी थे. और यहां उनकी नहीं पटेल की चली. और पटेल की पहली पसंद थे जयपुर रियासत की लोकप्रिय सरकार के मुख्यमंत्री हीरालाल शास्त्री. इनकी कहानी हमने आपको मुख्यमंत्री-राजस्थान के पहले किस्से में विस्तार से सुनाई है.

जब तक पटेल रहे शास्त्री की हनक रही. उनके निधन के बाद बगावत हो गई. संवैधानिक संकट भी. एक आइएएस वेंकटाचार को तीन महीने के लिए वर्किग सीएम बनाना पड़ा. फिर नेहरू ने जयानारायण व्यास को गद्दी सौंप दी.

राजा का बदला पूरा, या अधूरा

26 अप्रैल 1951 को व्यास सीएम बने. मगर कुछ ही महीनों के लिए. क्योंकि 1951 के आखिर से देश के पहले चुनावों की प्रक्रिया शुरू हो गई. ज्यादातर जगहों पर कांग्रेस को बढ़त थी. मगर राजस्थान में मुकाबला जोरदार था. वजह, यहां के राजघराने खुलकर कांग्रेस का विरोध कर रहे थे. जागीरदार और राजा जनसंघ, राम राज्य परिषद के टिकट पर या फिर निर्दलीय चुनाव में उतर गए. इनका नेतृत्व कर रहे थे जोधपुर के राजा हनवंत उर्फ हणूत सिंह. चुनाव में व्यास दो सीटों से लड़े. एक जालौर-ए और दूसरी जोधपुर शहर-बी.

हणूत ने व्यास के लिए पूरी फील्डिंग सेट कर दी. जोधपुर से खुद लड़े और जालौर से जागीरदार माधो सिंह को लड़वाया. इसका नतीजा क्या रहा, हम आपको शुरू में बता चुके हैं. व्यास, सिटिंग सीएम, दोनों जगह से हार गए. जो जीते उसका भी फसाना सुन लीजिए. हणूत सिंह 1952 में जोधपुर से लोकसभा और विधानसभा, दोनों का चुनाव लड़े. दोनों जीते. मगर वोटिंग होने के बाद और नतीजों से पहले उनका निधन हो गया. पाकिस्तान सीमा के पास एक हवाई दुर्घटना में.

 किस्मत

कांग्रेस में तब जयनारायण व्यास खेमा हावी था. हीरालाल शास्त्री और गोकुलभाई भट्ट जैसे नेता पहले ही हाशिए पर जा चुके थे. ऐसे में व्यास समर्थक हारने के वाबजूद उन्हें ही सीएम बनाने पर अड़े थे. लेकिन तब नैतिकता इतनी भी नहीं गुजरी थी. व्यास पर्दे के पीछे चले गए. कुछ वक्त के लिए. सीएम बने पिछली सरकार में उनके डिप्टी रहे टीकाराम पालीवाल.

टीकाराम ने मुख्यमंत्री बनने के बाद अपने हिसाब से दांव चलने शुरू कर दिए. मंत्रिमंडल में व्यास और उनके खास संगठनकर्ता माणिक्य लाल वर्मा की नहीं चली. ये माणिक्य लाल को याद रखिएगा. आगे के किस्से में ये लौटेंगे. जयनारायण व्यास टीकाराम के सब दांव देखते रहे. फिर अपनी चाल चली. किशनगढ़ से विधायक चांदमल मेहता ने इस्तीफा देते हुए जयनारायण व्यास को वहां से उपचुनाव लड़ने का न्योता दिया. व्यास उपचुनाव में जीते.

फिर आया दिल्ली से संकेत और टीकाराम पालीवाल ने सीएम पद छोड़ दिया. 1 नवंबर, 1952 को जयनारायण व्यास फिर से राजस्थान के मुख्यमंत्री बन गए. पालीवाल को फिर से डिप्टी सीएम बनाया गया. लेकिन ये शांति और पुनर्वास ऊपरी था. कुछ ही दिन महीनों बाद पालीवाल पद छोड़ गए. अब जयपुर में व्यास और उनके खास मथुरादास माथुर और माणिक्यलाल वर्मा जैसे नेताओं की चलती थी.

अपनों का घात…

व्यास के सीएम बनने के दो साल के अंदर ही विधायक बगावती मूड में आ गए. नेहरू का दम अब काम नहीं आ रहा था. बागी विधायक एक 38 साल साल के युवा विधायक मोहन लाल सुखाड़िया के पीछे जुट गए. विरोध बढ़ा तो हाईकमान ने दखल दिया. विधायक दल की मीटिंग हुई और करीबी मुकाबले में व्यास हार गए.

कैसे हार गए व्यास. दो साल में अचानक क्या हो गया. सब बताएंगे.

 माणिक्यलाल और मथुरादास का जिक्र सुना था. अब कुछ और जान लीजिए. माणिक्य लाल राजस्थान बनने से पहले मेवाड़ राज्य के मुख्यमंत्री थे. उदयपुर से सियासत करते थे. कुछ बरस तो वो व्यास के पीछे खडे रहे मगर फिर राजनीतिक महात्वाकांक्षा कुलबुलाने लगी. अब उन्हें चाहिए था कोई जो अंतःपुर के भेद जानता हो. एंटर मथुरादास. जोधपुर से आने वाला जयनारायण का खास. उनकी सरकार में मंत्री. जिन पर उस दौर में भ्रष्टाचार के इल्जाम लगे. माणिक्यलाल और मथुरादास एक हो गए.

उन्होंने पहले निपटाया टीकाराम को. जब टीकाराम ने व्यास के लिए गद्दी छोड़ी तो जयनारायण ने उन्हें अपनी नई सरकार में फिर डिप्टी सीएम बना दिया. मगर माणिक्य और मथुरा को ये अखर गया. उन्हें ये भी बुरा लग रहा था कि जयनारायण अब रामकरण जोशी को ज्यादा तवज्जो दे रहे थे. ये भी उस सरकार में एक मंत्री थे.विवाद बढ़ने लगा. माणिक्य-मथुरा ने पहला वार किया. राज्यसभा के चुनाव में कांग्रेस विधायकों के एक ग्रुप ने कम्युनिस्ट पार्टी के उम्मीदवार को वोट कर दिया. व्यास ने पलटवार किया. 22 विपक्षी विधायकों को कांग्रेस में ले आए.

अब तलवारें खुले में बाहर थीं. विधायकों ने मोहनलाल सुखाड़िया को अपना नेता प्रोजेक्ट करना शुरू कर दिया. बार बार दिल्ली जाकर विधायकों के जत्थे शिकायत करने लगे.आजिज आकर नेहरू ने दिल्ली से अखिल भारतीय कांग्रेस के महासचिव बलवंत राय मेहता को पर्यवेक्षक बनाकर जयपुर भेजा. विधायकों की राय जानने के लिए. यहीं पर वोटिंग हुई और व्यास हार गए.

नतीजे सुनने के बाद हॉल से निकलते व्यास एक बार पलटे. देखा, कल तक जो साथ थे अब वे पाले के उस पार जश्न मना रहे थे. माणिक्य लाल-मथुरा दास.मगर अभी करुणा का सार्वजनिक प्रदर्शन, भौंडा ही सही. कुछ बाकी था. व्यास बाहर आए तो सरकारी गाड़ी में नहीं बैठे. तांगा मंगवाकर सरकारी आवास गए. खुद ही सामान चादरों में बांधने लगे.तभी दरवाजे पर अर्दली आया और बोला, सुखाड़िया जी आए हैं. कांग्रेस विधायक दल के नए नेता जयनारायण का आशीर्वाद लेने आए थे. और उनके साथ, माणिक्य लाल-मथुरादास.

दोनों व्यास के पैर छू फूट फूट रोने लगे.व्यास को पता था. सब तात्कालिक है. उन्होंने तांगे पर सामान लदवाया और दोस्त केसूजी के घर रहने चले गए.

अब सूर्य अस्ताचल को था. जयनारायण व्यास एक बार राज्यसभा सांसद बने. दो साल प्रदेश अध्यक्ष भी रहे. मगर सत्ता का केंद्र अब उनकी नजर से ओझल हो चुका था. जीवन भी ओझल हुआ. मार्च 1963 में. दिल्ली में.

मुख्यमंत्री के अगले एपिसोड में देखिए उस लड़के की कहानी, जिसने शादी की तो विरोध में पूरा शहर बंद रहा. जो लगातार 17 साल सीएम रहा. उत्तर भारत की सियासत के लिहाज से ये एक रेकॉर्ड है, जो आज तक कायम है.


मंगलवार, 10 नवंबर 2020

क्या ।।श्री हरिदेव जोशी।। प्रधानमन्त्री बनने के करीब थे।


बहुत कम लोग ही जानते होंगे कि राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री स्व. हरिदेव जोशी अच्छे ज्योतिषी, तांत्रिक और राजयोग सम्पन्न व्यक्तित्व थे और ज्योतिषीय दृष्टि से उनके प्रधानमंत्री पद तक पहुंचने के योग थे।
यह किसी सामान्य ज्योतिषी या योगी की राय नहीं थी बल्कि विश्व स्तर पर प्रसिद्ध ज्योतिर्विद और तंत्र सिद्ध, विश्वविजय पंचांग के संपादक एवं देश की प्रसिद्ध ज्योतिष पत्रिका ’’ज्योतिष्मती’’ के संपादक पं. हरदेव शर्मा की राय है जो उन्होंने 12 जनवरी 1974 को स्व. हरिदेव जोशी के पिता एवं जाने-माने ज्योतिर्विद स्व. पं. पन्नालाल जोशी को लिखे पत्र में व्यक्त की थी।

पं. हरदेव शर्मा त्रिवेदी ने 9 जनवरी 1974 से 6 अप्रेल 1974 की ज्योतिष्मती में भी इस बात का संकेत दिया था। इसमें तत्कालीन राजनैतिक परिस्थितियों की विषमताओं और प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी की योजना को धत्ता दिखाकर मुख्यमंत्री पद प्राप्त करने में सफल रहे स्व. जोशी के विलक्षण व्यक्तित्व पर भी प्रकाश डाला गया है।
                     स्वयं हरदेव शर्मा त्रिवेदी ने इस दौरान जोशी को कुछ तांत्रिक प्रयोग बताए थे जिनमें कवच, कुंजिका स्तोत्र और अर्जुनकृत दुर्गास्तुति का नित्यपाठ स्वयं करने की सलाह जयपुर में एक दिसम्बर 73 की रात दी थी। इसके साथ ही स्व. जोशी के पिता स्व. पन्नालाल जोशी को भी सुझाव दिया था कि वे सार्ध नवदुर्गा प्रयोग कराएँ। यदि तमाम अनुष्ठान ठीक-ठीक हो गए होते तो स्व. हरिदेव जोशी हिन्दुस्तान के प्रधानमंत्री पद पर प्रतिष्ठित होते, जिनके लिए हरदेव शर्मा त्रिवेदी ने विश्वास जाहिर किया था कि श्री हरिदेव जोशी एक दिन नई दिल्ली में प्रधानमंत्री के निवास गृह में विराजेंगे।

पं0 हरदेव शर्मा त्रिवेदी स्व. जोशी को पग-पग पर सलाह देते रहे और एक-एक दिन की कुण्डली एवं ग्रहों की स्थिति से जोशी वाकिफ थे। इसके साथ ही त्रिवेदी अपने मित्र तथा सिद्ध ज्योतिर्विद, जोशी के पिता स्व0 पन्नालाल जोशी से अक्सर ज्योतिष, योग एवं तंत्र विषयों पर विचार-विमर्श करते रहते थे।

जाने-माने तंत्रविद स्व. देवर्षि पं. महादेव शुक्ल के निर्देशन में स्व. जोशी ने कई बार शतचण्डी, सहस्रचण्डी, लघुरूद्र, महारूद्र, महामृत्युन्जय सम्पुट सहित रूद्रार्चन तो कराया ही, खासकर त्रिपुर सुन्दरी अर्चना के निमित्त श्रीयंत्र पूजा, श्रीविद्या विधानम्, बगलामुखी साधना और तांत्रिक पद्धति से महत्वपूर्ण मानी गई तमाम साधनाओं में हिस्सा लिया। जब भी श्री जोशी बांसवाड़ा आते, वे निश्चित तौर पर बांसवाड़ा से सत्रह किलामीटर दूर त्रिपुरा सुन्दरी शक्तिपीठ जाते और पूजा-अर्चना करने के बाद ही दूसरा कोई काम शुरू करते। उनकी आस्था का ही परिणाम है कि त्रिपुरा सुन्दरी देवी तीर्थ के रूप में निरन्तर विकसित होता गया। यह शक्तिपीठ प्राचीनकाल में राजा-महाराजाओं के लिए शक्ति संचय एवं दैवी कृपा पाने का अनन्य आश्रय स्थल रहा है। कई बार स्व. जोशी ने पं. महादेव शुक्ल के निर्देशन में अपने सर्वविध कल्याण एवं विभिन्न बाधाओं से मुक्ति के लिए मन्दिर परिसर के बन्द कमरों में पीताम्बरा महायज्ञ एवं जपानुष्ठान कराया। विलक्षण व्यक्तित्व के साथ-साथ अक्सर होते रहने वाले अनुष्ठानों का ही असर रहा कि स्व. जोशी के शत्रु एक-एक कर परास्त होते चले गए और कइयों को मुँह की खानी पड़ी और स्व. जोशी के जीते जी वे सर न उठा सके। प्रायः तर चुनाव एवं संकट के दिनों में स्व. जोशी ने इन पुरातन प्रयोगों का सहारा लिया और यह सत्य ही है कि जो लोग जोशी का विरोध करते, वे चुनाव समीप आते ही उनके भक्त हो जाते। स्व. जोशी ही वह शख्सियत थी जो सन् 1977 के चुनाव में बहुमत के साथ विजयी हुए, जिस समय बड़े-बड़े नेताओं को धूल चाटनी पड़ी थी।
       तत्कालीन प्रधानमंत्री की इच्छा जोशी को मुख्यमंत्री बनाने की नहीं थी मगर अपने चातुर्य और शक्ति से उन्हें मुख्यमंत्री पद के लिए चुन लिया गया। इस बारे में पं. हरदेव शर्मा त्रिवेदी ने लिखा है- ’’राजस्थान के छठे मुख्यमंत्री श्री हरिदेव जोशी बनाए गए हैं। प्रधानमंत्री की योजना को ’’जेतारमपराजित’’ करके वे चुने गए हैं।’’

तत्कालीन राजनैतिक कुटिलताओं का खाका खिंचते हुए वे आगे लिखते हैं-  "प्रधानमंत्री की योजना थी कि पंजाब, हरियाणा के समान राजस्थान में कोई जाट नेता मुख्यमंत्री बनाया जाए। इस प्रकार जैसलमेर, गंगानगर से अमृतसर तक स्वेच्छाचारी जाट राज्य स्थापित हो जाएगा। राजनीतिक प्रभुता पाकर वह सदा इन्दिरा कांगे्रस को वोट देंगे। सरदार स्वर्णसिंह जाट साम्राज्य के स्वप्न दृष्टा हैं। इससे पहले इसके सरदार बलदेव सिंह थे। किन्तु हरियाणा के मुख्यमंत्री ने अपने उद्दण्ड व्यवहार, स्वेच्छाचारी शासन और अशिष्ट भाषा का व्यवहार कर अन्य वर्गो को असन्तुष्ट कर दिया। अतः राजस्थान में प्रधानमंत्री की इच्छा का व्याघात करने में गृहमंत्री दीक्षित और कांगे्रस अध्यक्ष डॉ. शंकरदयाल शर्मा अग्रणी हुए। श्री हरिदेव जोशी को प्रधानमंत्री के इन दो विश्वस्त सहयोगियों का आशीर्वाद और समर्थन प्राप्त था। फिर राजपूतों और कम्युनिस्टों ने भी श्री जोशी का समर्थन किया। ’’

’’ज्योतिष्मती’’ के इसी अंक में आगे लिखा गया है कि ’’जोशी सामन्तवाद के कट्टर विरोधी हैं, अतः ब्राह्मण, क्षत्रियों का उनको समर्थन मिला। श्रीमती चन्द्रेशखर की पहली रिपोर्ट को परराष्ट्रमंत्री सरदार स्वर्ण सिंह ने गलत बताया था। इस समय तक श्री रामनिवास मिर्धा का नाम तक सुनाई नहीं पड़ा था। सरदार स्वर्णसिंह आगे बढ़े और प्रधानमंत्री को कहकर श्री मिर्धा को उम्ीदवार बनाया। किन्तु प्रधानमंत्री ने पराजय की आशंका से खुलकर नहीं कहा कि ’’ श्री मिर्धा को चुनो।’’ अतः बलाबल का ज्ञान हो जाने पर श्रीमती गांधी ने रणक्षेत्र से लौटने में ही अपनी मानरक्षा मानी।’’
इसमें कहा गया है कि श्री जोशी अपराजित को जीतने वाले हैं। प्रधानमंत्री की यह पराजय भी उनके दो सहयोगियों का उनकी इच्छा का विरोध करना बताता है कि इन्दिरा कांगे्रस में दरारें पड़ने लगी हैं। पहली दरार का नाम है हरिदेव जोशीः यह भारत के रंगमंच पर नूतन शक्ति है। यदि राणाप्रताप का पथ श्री जोशी ने दृढ़ता से अपनाया और राजस्थान को अंगे्रजी शासन के अभिशाप से सर्वथा मुक्त कर जन नेता बनने में सफल हुए तो विश्वास करना चाहिए कि श्री हरिदेव जोशी एक दिन नई दिल्ली के प्रधानमंत्री के निवास गृह में विराजेंगे।
स्व. जोशी के व्यक्तित्व के विभिन्न पहलुओं को उजागर करते हुए पत्रिका में कहा गया है कि उनकी संगठन शक्ति का ही परिणाम था कि सन् 1955 से 1971 तक सुखाड़िया मंत्रिमण्डल टिका रहा। सुखाड़िया मंत्रिमण्डल की शक्ति श्री जोशी थे। जैसे पाण्डवों की शक्ति भगवान कृष्ण थे। यह भी कहा गया कि यद्यपि श्री जोशी ’’नवयुग दैनिक’’ नहीं चला सके, फिर भी यह विफलता उनको आगे बढ़ने से न रोक सकी।

राजस्थान के प्रमुख शैक्षणिक संस्थान ➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖

राजस्थान में अनेक शैक्षणिक संस्थान हैं। जिनमें राज्य द्वारा संचालित जयपुर, उदयपुर, जोधपुर व अजमेर विश्वविद्यालय; कोटा खुला विश्वविद्यालय; पिलानी में बिड़ला इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी एण्ड साइन्स शामिल हैं। यहाँ अनेक राजकीय अस्पताल और दवाख़ाने हैं। यहाँ कई आयुर्वेदिक, यूनानी (जड़ी-बूटियों पर आधारित चिकित्सा पद्धति) एवं होमियोपैथी संस्थान हैं। राज्य सरकार शिक्षा, मातृत्व व शिशु कल्याण, ग्रामीण व शहरी जलापूर्ति एवं पिछड़ों के कल्याण कार्यों पर भारी व्यय करती है।
1. वनस्‍थली विद्यापीठ (मानद विश्‍वविद्यालय)

2. बिरला प्रौद्योगिकी और संस्‍थान संस्‍थान (मानद विश्‍वविद्यालय)

3. आई. आई. एस. विश्‍वविद्यालय (मानद विश्‍वविद्यालय)

4. जैन विश्‍व भारती विश्‍वविद्यालय (मानद विश्‍वविद्यालय)

5. एलएनएम सूचना प्रौद्योगिकी संस्‍थान (मानद विश्‍वविद्यालय)

6. मालवीया राष्‍ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्‍थान (मानद विश्‍वविद्यालय)

7. मोहन लाल सुखादिया विश्‍वविद्यालय

8. राष्‍ट्रीय विधि विश्‍वविद्यालय

9. राजस्‍थान कृषि विश्‍वविद्यालय

10. राजस्‍थान आर्युवैद विश्‍वविद्यालय

11. राजस्‍थान संस्‍कृत विश्‍वविद्यालय

12. बीकानेर विश्‍वविद्यालय

13. कोटा विश्‍वविद्यालय

14. राजस्‍थान विश्‍वविद्यालय।


➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖

राजस्थान के महत्वपूर्ण सांस्कृतिक कला केन्द्र।।

राजस्थान के प्रमुख सांस्कृतिक कार्यक्रम स्थल
➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖
1. जवाहर कला केन्द्र-जयपुर

स्थापना - 1993 ई.

इस संस्था द्वारा सर्वाधिक सांस्कृतिक गतिविधियों का आयोजन किया जाता है।

2. जयपुर कत्थक केन्द्र-जयपुर

स्थापना -1978 ई.

3. रविन्द्र मंच- जयपुर

स्थापना -1963 ई.
4. राजस्थान संगीत संस्थान- जयपुर

स्थापना 1950 ई.

5. पारसी रंग मंच - जयपुर

स्थापना-1878 ई.

जयपुर के शासक रामसिंह द्वितीय के द्वारा स्थापित है। इसे राम प्रकाश थियेटर भी कहा जाता है।

6. पशिचमी क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र - उदयपुर

स्थापना - 1986 ई.

यह केन्द्र बागौर हवेली में संचालित है।

7. राजस्थान संगीत नाटक अकादमी- जोधपुर

स्थापना 1957

8. राजस्थान साहित्य अकादमी- उदयपुर

स्थापना जनवरी 1958 ई.।

9. भवानी नाट्यशाला

महाराजा भवानी सिंह द्वारा 1921 ईं. में स्थापित की गई।

10. राजस्थान भाषा साहित्य एवं संस्कृत अकादमी बीकानेर

11. पं झाबर मल शर्मा शोध संस्थान- जयपुर

स्थापना 2000 ई.

12. सदीक खां मागणियार जोक कला एवं अनुसंधान परिषद/ लोकरंग - जयपुर

स्थापना -2002 ई

13. भारतीय लोक कला मण्डल -उदयपुर

संस्थापक - देवी लाल सांभर

स्थापना - 1952 ई.

14. मारवाड़ नाटक संस्थान/मारवाड़ लोक कला मण्डल -जोधपुर

संस्थापक-लक्ष्मण दास डांगी

स्थापना- 1897 ई.

15. मरूधर लोक कला मण्डल

संस्थापक -गणपत लाल डांगी

गणपत लाल डांगी को "गीगले का बापू" कहते है।

16. रूपायन संस्थान:- बौरूदा (जोधपुर)

स्थापना:- 1960 ई.

संस्थापक - कोमल सिंह कोठारी


सोमवार, 9 नवंबर 2020

नोटबंदी के चार साल: कालाधन व गरीबों का हाल

<मोदी ने भारत को कपोल-कल्पनाओं का देश बना दिया है >
 चार साल पहले आज ही के दिन नोटबंदी हुई थी। उसी दिन से सत्यानाश की कहानी शुरू हो गई। कई तरह के दावे हुए कि ये ख़त्म हो जाएगा वो ख़त्म हो जाएगा। मूर्खतापूर्ण फ़ैसले को भी सही ठहराया गया। बड़े और कड़े निर्णय लेने की सनक का भारत की अर्थव्यवस्था को बहुत गहरी क़ीमत चुकानी पड़ी है। दशकों की मेहनत एक रात के फ़ैसले से तबाह हो गई। हफ़्तों लोग लाइन में लगे रहे। लोगों के घर में पड़े पैसे बर्बाद हो गए। सबको एक लाइन से काला धन करार दिया गया और काला धन कहीं और के लिए बच गया। उसके लिए बना इलेक्टोरल फंड। जिसमें पैसा देने वाले का नाम गुप्त कर दिया गया। उस वक्त इस फ़ैसले को सबसे बड़ा फ़ैसला बताया गया मगर अपनी मूर्खता की तबाही देख सरकार भी भूल गई। मोदी जी तो नोटबंदी का नाम नहीं लेते है। मिला क्या उस फ़ैसले से ? मोदी सरकार ने नोटबंदी कर लघु व छोटे उद्योगों की कमर तोड़ दी। हिन्दू मुस्लिम नफ़रत के नशे में लोग नहीं देख सके कि असंगठित क्षेत्र में मामूली कमाने वाले लोगों की कमाई घट गई। उनका संभलना हुआ नहीं कि जीएसटी आई और फिर तालाबंदी। तीन चरणों में अर्थव्यवस्था को बर्बाद कर देश को बेरोज़गारी की आग में झोंक दिया। लाखों करोड़ों घरों में आज उदासी है। भारत को संभावनाओं का देश बनाने की जगह कपोल- कल्पनाओं का देश बना दिया। युवाओं की एक पूरी पीढ़ी बर्बाद हो गई। उनके सपनों में नफ़रत भर दी गई। बुज़दिल बना दिए गए। उन्हें हर बात में धर्म की आड़ में छिपना बतला दिया। महान बनने की सनक का दूसरा नाम है नोटबंदी।

रविवार, 8 नवंबर 2020

Ravish Kumar ka ट्रम्प के नाम पत्र। बिहारी स्टाइल में।

श्रीयुत् महामहिम ट्रंप जी,

प्रणाम,

मुझे ख़ुशी है कि आप पद नहीं छोड़ना चाहते हैं। मत छोड़िए। चार साल सुपर पावर रहने के बाद कुर्सी छोड़ने का स्वाद वैसा ही है जैसे गुटखा चबाने के बीच में सुपारी की जगह मिट्टी निकल जाए। समझे में नहीं आता है कि पूरा थूकें कि आधा थूकें। आप ठीक करते हैं कि गुटखा नहीं खाते हैं। आप अपने आप में गुटखा हैं। आप व्हाइट हाउस के भौंरा हैं। आप किसी और बाग़ में मंडराएं अच्छा नहीं लगेगा। 

ट्रंप भाई, आप इलेक्शनवा कहां हारे हैं। बेलकुल नहीं हारे हैं। ऊ त बाइडन भाई जीत गए हैं। आपकी हार तो तब न होती जब बाइडन हार जाते। नहीं बूझे। थेथरोलॉजी नहीं पढ़े थे का लइकाई में। आपके जैसा रंगीन राष्ट्रपति अब नहीं होगा। मज़ा आता था ट्रंप भाई। लगता था कि गांव के बारात में नाच पार्टी आई है। आपने दुनिया को बताया कि राष्ट्रपति पद पर पहुंच कर सीरीयस होने की ज़रूरत नहीं है। ई  मज़ा-मस्ती का पोस्ट होता है। कुछ मोर-वोर पाले हैं कि नहीं। कोर्ट में कह दीजिएगा कि हमारी गैया यहां बंधी हैं। उसका खूंटा है यहां। हम नहीं जाएंगे। मजाल है फिर कि कोर्ट आपको व्हाइट हाउस से निकाल दे। मेरे सुझाव को गंभीरता  से लीजिएगा।

बाइडन भाई को राष्ट्रपति बनना होगा तो अपना अलग व्हाइट हाउस बना लेंगे। आप कुर्सी मत छोड़िए। छोड़िएगा भी तो व्हाइट हाउस की कुर्सी लेते आइयेगा। हम लोग तो यहां आपके सपोर्टर हैं। डर से भी करते हैं नहीं तो आई टी सेल वाला सत्यानाश हवन करवाने लगेगा। मंत्र का सही उच्चारण नहीं करने से हवन का असर उल्टा हो जाता है। पता कर लीजिएगा दोस्त से कि मंत्र जाप करने वालों को मंत्र का उच्चारण आता था कि नहीं। हार जीत होती रहती है। अबकी भारत आइयेगा तो बनारस ले चलेंगे। मां गंगा बुला रही है। 

इंडिया टाइप आप लोगों को लटियन ज़ोन में मकान नहीं मिलता है क्या?  तभी न कहें कि व्हाइट हाउस छोड़ने से काहे छटपटा रहे हैं। सही बात है। एकदमे व्हाइट हाउस से निकल कर बुराड़ी में रहने के लिए कोई बोल दे तो मिजाजे झनक जाएगा। बाइडन से पूछिए कि कोई मकान देगा कि नहीं।  

आपने जो भी झूठ बोला पहले ख़ुद बोला। ये आपकी ख़ूबी थी। आप अपने झूठ को दोहराते भी थे। आपके कैबिनेट में के लोग आपके झूठ को री-ट्विट नहीं करते थे। आपने झूठ बुलवाने के लिए न्यूज़ एंकर को नहीं हटवाया न चैनल के मालिको को डरवाया। आपकी इस लोकतांत्रिक भावना का मैं सम्मान करता हूं। व्हाइट हाउस में प्रेस कांफ्रेंस में आते थे और सामने से झूठ बोलते थे। झूठ को सच की तरह बोलने वाले आप अकेले बड़े नेता हैं। बाकी लोग तो सच बोलने की आड़ में झूठ बोलते रहे। आपकी सबसे बड़ी असफलता यही रही कि आपके यहां चैनल सब माने नहीं. खाली फाक्स न्यूज़वा आपकी तरह था बाकी कोई झुका ही नहीं। हमसे पूछते तो यहां से आइडिया भेज देते। नहीं पूछे न, अब ई चिट्ठियां पढ़ लीजिएगा। 
 
अच्छा ट्रंप भाई एक बात बताइये। मलेरिया वाला गोलिया रखे हैं कि खा गए सब। बच गया हो तो लौटा दीजिएगा। इंडिया में मलेरिया के टेभलेट का ज़रूरत पड़ते रहता है। मच्छर बड़ी काटता है नहीं तो हम भी सोचे थे कि बोलाएंगे आपको। फिनिट मार मार कर फिनिट खत्म हो जाता है। मच्छर नहीं भागता है सब। 

आपके ऊपर ग़लत आरोप लगा दिया सब कि कोरोना से लड़ने के लिए तैयारी नहीं की। भारत में अस्पताल तक नहीं है और अस्पताल के भीतर डाक्टर तक नहीं है फिर भी कोरोना से लड़ने की तैयारी के लिए तारीफ हो रही है। न्यूज़ में सुने है कि भारत की तारीफ हो रही है। तारीफ कौन कर रहा है ई नहीं बताता है सब। आप तारीफ कर रहे हैं? 

सूते हैं कि नहीं चार दिन से। सूतिए महाराज। आप ट्रंप हैं। आप वीर हैं। वीर। वीर भोग्या वसुंधरा। आपने विजेता घोषित कर दिया है तो कम से कम व्हाइट हाउस त भोगिए। हम तो मिस करेंगे। टिकटे नहीं कराइस सब न तो टैक्सस की रैली में आने वाले थे। कोई नहीं। अहमदबाद आए तो हड़बड़ी हड़बड़ी में चल गए। हमको तो लगा था कि आप दुन्नू रैलियां के बाद टू-थर्ड से पार हो गए हैं। पैसा देकर त भीड़ नहीं न जुटाइस था लोग ईहां। पता कर लीजिएगा। टेक्ससवा में त जीता दिए हैं न जी।  

आपका होटल देखे हैं। व्हाइट हाउस ज्यादा दूर तो नहीं है। टॉप फ्लोर से व्हाइट हाउस दिखता ही होगा। नहीं तो ओकरे छत पर कुर्सी लगा कर देखिएगा। आपको कौनो सहरसा थोड़े न जाना है। कोसी बेल्ट में बहुते दिक्कत है। का कहें। रख रहे हैं कलम। उम्मीद है चिट्ठियां पहुंच जाएगी। हमीं लिखे हैं।  

आपका पर्सनैलिटिये अइसा है कि हमहूं सोचें कि तनी अमरीकन हो जाएं। बड़ा ठंडा पड़ता है भाई जी ऊंहा। आप न्यूयार्क में कहीं अलाव का इंजाम नहीं किए थे। हम लोगों के लिए सरकार शीतलहरी में अलाव जलवाती है। ओन्ने त बरफ जमल था भाई जी। लगा कि हमको उठाकर फ्रीजर में डाल दिहिस है। थरथरी छूट गया था।  अब न जाएंगे दोबारा।

क्या बाबा गुरुमित राम रहीम को पैरोल मिली? जाने क्या है उसके नियम।

#~ रोहतक की सुनारिया जेल में सजा काट रहे गुरमीत राम रहीम को 24 घंटे के लिए सीक्रेट पैरोल पर जेल से बाहर निकला गया, लेकिन ऐसा नहीं है। यहां पर बता देना जरूरी है कि गुरमीत राम रहीम की मिली यह सामान्य पैरोल नहीं थी, बल्कि इसे कस्टडी पैरोल कहा जाता है।>

*कौन देता है कस्टडी पैरोल©
©नियम के मुताबिक, पैरोल जिला कलेक्टर (District Collector) देता है, जिसे पाने के लिए कैदी को आवेदन करना पड़ता है। इसके बाद यह डीसी पर निर्भर है कि वह पैरोल दे या नहीं। वहीं, कस्टडी पैरोल देने का अधिकार जेल सुप्रीन्टेडेंट के पास होता है। जेल सुप्रीन्टेंडे के पास अनुरोध आने पर कैदी के आवेदन पर विचार करता है फिर अपने विवेक से पैरोल देता है या फिर अनुरोध भी अस्वीकार कर सकता है। कस्टडी पैरोल कुछ घंटों या अधिक से अधिक एक दिन की होती है और इस दौरान कड़े नियम लागू होते हैं। कस्टडी पैरोल कैदी के करीबी के निधन पर या फिर किसी रिश्तेदार के बीमार होने की सूरत में ही मिलता है। कस्टडी पैरोल मिलने की स्थिति में कैदी को पुलिस की कड़ी सुरक्षा में ले जाया जाता है, फिर उसे तय समय के भीतर वापस जेल के भीतर लाया जाता है। 2 युवतियों से दुष्कर्म मामले में सजा काट रहे गुरमीत राम रहीम के साथ 24 अक्टूबर को ऐसा ही हुआ। गुरमीत एक दिन की कस्टडी पैरोल पर गुरुग्राम के नामी अस्पताल में भर्ती अपनी 90 वर्षीय मां से मिलने आया। वह सुबह से शाम तक अपनी मां के साथ रहा और फिर शाम को पुलिस सुरक्षा में वापस रोहतक की सुनारिया जेल चला गया।*
*सिर्फ 4 लोगों को थी इस कस्टडी पैरोल के बारे में जानकारी*
*बेशक गुरमीत राम रहीम की कस्टडी पैरोल को गुप्त रखा गया था। 24 घंटे सक्रिय रहने वाले मीडिया को इसकी भनक तक नहीं लगी। दरअसल, डेरा प्रमुख गुरमीत राम रहीम 24 घंटे के कस्टडी पैरोल पर रोहतक की सुनारिया जेल से बाहर निकाला गया। इसके लिए बाकायदा लिखित में अनुमति मांगी गई थी। राम रहीम को मिला ये पैरोल इस कदर गोपनीय था कि समूचे हरियाणा में सिर्फ 4 लोगों को इसकी जानकारी थी। इनमें सीएम मनोहर लाल के अलावा एक मंत्री और 2 अधिकारी थे। गुरमीत राम रहीम को ये पैरोल 24 अक्टूबर को मिली थी। इससे वह दिनभर अपनी बीमार मां के साथ रहा।*
*मिली जानकारी के मुताबिक, रोहतक की सुनारिया जेल में सजा काट रहा दुष्कर्म का दोषी राम रहीम हरियाणा पुलिस की तीन कंपनियों की सुरक्षा में गोपनीय तरीके से जेल से बाहर गुरुग्राम लाया गया था। यहां उसने अस्पताल में भर्ती अपनी मां से मुलाकात की थी।*